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दोहा

 दिखता सत्य असत्य में, ज्यों दुर्गुण गुण नेक। अज्ञानी ज्ञानी बनें, जब घट जगे विवेक।। ~सुमा

मतदान श्लोगन

 करो नहीं कोई नादानी। मत देकर सरकार बनानी।। रहे न कोई बात बताएं। मत का दान करें सब जाएं।। अपने मत की वैल्यू जानो। सब अधिकारों को पहचानों।। मत का दान करो नहीं डरना। रहे न कोई मत सब करना।। दिव्य अंग जन बूढ़ी दादी। हेल्प करेगी सबकी खादी।। यदि डरे कोई सकुचाए। बी एल ओ को शीघ्र बताए। नाम जुड़े तब देना वोट। लेना नहीं किसी से नोट।। बी एल ओ से नाम जुड़ाओ। मत देने का हक तुम पाओ।। मत देने को जाना है। नीला बटन दबाना है।। ई वी एम और वी वी पेट। वोट कीजिए इस पर सेट।। वीवी पेट ऐसी लगे मशीन। जो दिखलाए वोट का सीन।। सबके सबको आना है। मतदान बूथ पर जाना है।। लेना नहीं किसी से नोट। देना अपने मन से वोट।। बूढ़े साथी और जवान। करिएगा सब मत का दान।। चाची ताई मौसी दादी। मत की करो नहीं बर्बादी।। एक वोट की कीमत जानो। अपने हक को सब पहचानों।। रह न जाए वोट किसी का। बड़ा बहुत है अर्थ इसी का।। दादा दादी तुम सब आओ। मत देकर सरकार बनाओ।। डरो नहीं करिए मतदान। लोकतंत्र की ये पहचान।। आओ हम सब मिलकर गाएं। देना वोट सभी बतलाएँ।। अपनी सरकार बनाना है। हक है, नहीं बहाना है। सबके ये अरमान हों। शत प्रतिशत मतदान हो।। आन बान अरु शान से

दोहा प्रभाती

दोहा प्रभाती  अरुणिम आभा ले जगे, सुंदर आज दिनेश। ‘सुमा’ सुखों से भर उठे, मेरा भारत देश।। मेघ, तड़ित है गर्जना, बरसे भारी नीर। शीघ्र विहंगम आइए, हलधर हुए अधीर।। रिमझिम बूंदे भूमि पर, बादल शीत बयार। मुदित मयुख लेकर यहां, उदित हुए मन्दार।। खग कुल कलरव कर उठे, शीतल मन्द बयार। ‘सुमा’ भानु ले नव मयुख, करें धरा से प्यार।। मुस्काई अनुपम धरा, पुलकित मन से शाक। लेकर नव प्रभात को, आए अरुणिम आक।। तिल–तिल तम विनशे यहाँ, सुखमय बढ़े प्रकाश। चले भानु ले ज्योति को, करें पूर्ण जग आश।। अरुणिम आभा संग में, शीतल मन्द समीर। रवि रश्मि मुस्कान से, सबके जगे ज़मीर।। कण–कण पुलकित प्रेम में, करने को दीदार। मंगल मरीचि साथ ले, आओ हे!मंदार ।। काल कालिमा हट गई, मंगल हुआ प्रभात। दिनकर लाए सुखमयी, सृष्टि हेतु सौगात।। वात मंद शीतल बहे, खुला सृष्टि का ध्यान। दिव्य ज्योति मंगलमयी, लाए रवि भगवान।। तारागण लेके विदा, चले यामिनी संग। मंगलमय आभा लिए, निकले आज पतंग।। तिल–तिल तम विनशे यहाँ, सुखमय बढ़े प्रकाश। चले भानु ले ज्योति को, करें पूर्ण जग आश।। क्षणदा क्षण–क्षण घट रही, हुआ तिमिर का अंत। मित्र उदय से मिट रहा, इस कुदरत का प

चलो तुमको बताऊं मैं (मुक्तक संग्रह)

 कहां है सुख छुपा जग में, चलो तुमको बताऊं मैं। कहां आनंद जन्नत सा चलो तुमको बताऊं मैं। दुवाएं दीन दुखियों की, मिले सुख ध्यान सेवा से। पिता मां अंक में जन्नत चलो तुमको बताऊं मैं। सफलता अरु सुखों की राह मिलती है उसे जग में। मिले सम्मान अपनों से सभी चाहें उसे जग में। चले जो सत्य नेकी पर करे सम्मान वृद्धों का। समझ कण–कण चले अपना मिलें सब सुख उसे जग में। खिलें सब फूल खुशियों के सदा घर द्वार नंदन हैं। उठे जग महक ये प्यारा लगें ज्यों बाग चंदन हैं। ‘सुमा’ सम्मान माथे का जगत के रंग सब इनसे। दिवस ये विश्व बेटी के मान हित आज वंदन है।