दोहा प्रभाती अरुणिम आभा ले जगे, सुंदर आज दिनेश। ‘सुमा’ सुखों से भर उठे, मेरा भारत देश।। मेघ, तड़ित है गर्जना, बरसे भारी नीर। शीघ्र विहंगम आइए, हलधर हुए अधीर।। रिमझिम बूंदे भूमि पर, बादल शीत बयार। मुदित मयुख लेकर यहां, उदित हुए मन्दार।। खग कुल कलरव कर उठे, शीतल मन्द बयार। ‘सुमा’ भानु ले नव मयुख, करें धरा से प्यार।। मुस्काई अनुपम धरा, पुलकित मन से शाक। लेकर नव प्रभात को, आए अरुणिम आक।। तिल–तिल तम विनशे यहाँ, सुखमय बढ़े प्रकाश। चले भानु ले ज्योति को, करें पूर्ण जग आश।। अरुणिम आभा संग में, शीतल मन्द समीर। रवि रश्मि मुस्कान से, सबके जगे ज़मीर।। कण–कण पुलकित प्रेम में, करने को दीदार। मंगल मरीचि साथ ले, आओ हे!मंदार ।। काल कालिमा हट गई, मंगल हुआ प्रभात। दिनकर लाए सुखमयी, सृष्टि हेतु सौगात।। वात मंद शीतल बहे, खुला सृष्टि का ध्यान। दिव्य ज्योति मंगलमयी, लाए रवि भगवान।। तारागण लेके विदा, चले यामिनी संग। मंगलमय आभा लिए, निकले आज पतंग।। तिल–तिल तम विनशे यहाँ, सुखमय बढ़े प्रकाश। चले भानु ले ज्योति को, करें पूर्ण जग आश।। क्षणदा क्षण–क्षण घट रही, हुआ तिमिर का अंत। मित्र उदय से मिट रहा, इस कुदरत का प